नज़्म: ( हिज्र का ग़म
नज़्म: ( हिज्र का ग़म )
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साये हिज्र के दिल मे क्यों गहराये जाते हैं,
क्यों ग़म जुदाई के दिल मे उतरते आते हैं।
अहसास अपने फन का कभी तो दिया होता तुमने,
खोखली तुम्हारी बातों मे कुछ तो जज़्बात होते उसमे।
तुम्हारे ख़्याल फिर क्योंकर हर वक्त आए जाते हैं,
साये हिज्र के दिल मे क्यों गहराये जाते हैं
छोटी सी मुलाकात मे स्वप्न इतने सजा बैठे थे हम,
इक अन्जान इन्सां को अपना समझ बैठे थे हम
वक्त की कसावत से क्यों आंसू निकलते आते हैं,
साये हिज्र के दिल मे क्यों गहराये जाते हैं।
न जाने क़शिश कैंसी थी तुम्हारे ज़िस्मेनूर मे
अजब सी इबादत थी तुम्हारी हर तक़रीर मे।
क्यूं न समझ पाये हम कि बेगाने दिल बहलाने आते हैं,
साये हिज्र के दिल मे,क्यों गहराये जाते हैं।
आनन्द कुमार मित्तल, अलीगढ़
Mohammed urooj khan
31-Jul-2023 03:50 PM
👌👌👌👌👌
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